Prime Minister Narendra Modi on Friday inaugurated golden jubilee celebrations of works of Ramdhari Singh Dinkar, ‘Sanskriti ke Chaar Adhyaye’ and ‘Parshuram ki Pratiksha’ at Vigyan Bhawan. While speaking at the event, PM Modi said that Dinkar’s work was a bridge between the youth and other sections of the society and that his poems used to energize the youth in the country.
Below is the full text of his speech in Hindi
दिनकर जी के सà¤à¥€ आदरणीय परिवार-जन, साहितà¥â€à¤¯-पà¥à¤°à¥‡à¤®à¥€ à¤à¤¾à¤ˆà¤¯à¥‹à¤‚ और बहनों,
ये मेरा सौà¤à¤¾à¤—à¥â€à¤¯ है कि आज शबà¥â€à¤¦-बà¥à¤°à¤¹à¤® की इस उपासना के परà¥à¤µ पर मà¥à¤à¥‡ à¤à¥€ पà¥à¤œà¤¾à¤°à¥€ बन करके, शरीक होने का आप लोगों ने सौà¤à¤¾à¤—à¥â€à¤¯ दिया है। हमारे यहां शबà¥â€à¤¦ को बà¥à¤°à¤¹à¤® माना है। शबà¥â€à¤¦ के सामरà¥à¤¥à¥â€à¤¯ को ईशà¥â€à¤µà¤° की बराबरी के रूप में सà¥â€à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° किया गया है।
किसी रचना के 50 वरà¥à¤· मनाना, वो इसलिठनहीं मना जाते कि रचना को 50 साल हो गये हैं, लेकिन 50 साल के बाद à¤à¥€ उस रचना ने हमें जिंदा रखा है। 50 साल के बाद उस रचना ने हमें पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ दी है और 50 साल के बाद à¤à¥€ हम आने वाले यà¥à¤— को उसी नज़रिये से देखने के लिठमजबूर होते हैं, तब जा करके उसका समà¥â€à¤®à¤¾à¤¨ होता है।
जिनको आज के यà¥à¤— में हम साहितà¥â€à¤¯à¤•à¤¾à¤° कहते हैं, कà¥â€à¤¯à¥‹à¤‚कि वे साहितà¥â€à¤¯ की रचना करते हैं, लेकिन दरअसल, वे ऋषि-तà¥à¤²à¥â€à¤¯ जीवन होते हैं, जो हम वेद और उपनिषद में ऋषियों के विषयों में पढ़ते हैं, वे उस यà¥à¤— के ऋषि होते हैं और ऋषि के नाते दृषà¥â€à¤Ÿà¤¾ होते हैं, वो समाज को à¤à¤²à¥€-à¤à¤¾à¤‚ति देखते à¤à¥€ हैं, तोलते à¤à¥€ हैं, तराशते à¤à¥€ हैं और हमें उसी में से रासà¥â€à¤¤à¤¾ खोज करके à¤à¥€ देते हैं।
दिनकर जी का पूरा साहितà¥â€à¤¯ खेत और खलिहान से निकला है। गांव और गरीब से निकला है। और बहà¥à¤¤ सी साहितà¥à¤¯à¤¿à¤•-रचना à¤à¤¸à¥€ होती है जो किसी न किसी को तो सà¥â€à¤ªà¤°à¥à¤¶ करती है, कà¤à¥€ कोई यà¥à¤µà¤¾ को सà¥â€à¤ªà¤°à¥à¤¶ करे, कà¤à¥€ बड़ों को सà¥â€à¤ªà¤°à¥à¤¶ करे, कà¤à¥€ पà¥à¤°à¥‚ष को सà¥â€à¤ªà¤°à¥à¤¶ करे, कà¤à¥€ नारी को सà¥â€à¤ªà¤°à¥à¤¶ करे, कà¤à¥€ किसी à¤à¥‚-à¤à¤¾à¤— को, किसी घटना को सà¥â€à¤ªà¤°à¥à¤¶ करे। लेकिन बहà¥à¤¤ कम à¤à¤¸à¥€ रचनाà¤à¤‚ होती हैं, जो अबाल-वृदà¥à¤§ सबको सà¥â€à¤ªà¤°à¥à¤¶ करती हो। जो कल, आज और आने वाली कल को à¤à¥€ सà¥â€à¤ªà¤°à¥à¤¶ करती है। वो न सिरà¥à¤« उसको पढ़ने वाले को सà¥â€à¤ªà¤°à¥à¤¶ करती है, लेकिन उसकी गूंज आने वाली पीढि़यों के लिठà¤à¥€ सà¥â€à¤ªà¤°à¥à¤¶ करने का सामरà¥à¤¥à¥â€à¤¯ रखती है। दिनकर जी कि ये सौगात, हमें वो ताकत देती है।
जय पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ नारायण जी, जिनà¥â€à¤¹à¥‹à¤‚ने इस देश को आंदोलित किया है, उनकी उमà¥à¤° को और यà¥à¤µà¤¾ पीढ़ी के बीच बहà¥à¤¤ फासला था, लेकिन जयपà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ जी की उमà¥à¤° और यà¥à¤µà¤¾ पीढ़ी की आंदोलन की शकà¥à¤¤à¤¿ इसमें सेतॠजोड़ने का काम दिनकर जी की कविताà¤à¤‚ करती थीं। हर किसी को मालूम है à¤à¥à¤°à¤·à¥â€à¤Ÿà¤¾à¤šà¤¾à¤° के खिलाफ जब लड़ाई चली, तो यही तो दिनकर जी की कविता थी, जो अà¤à¥€ पà¥à¤°à¤¸à¥‚न जी गा रहे थे, वो ही तो कविता थी जो नौजवानों को जगाती थी, पूरे देश को उसने जगा दिया था और उस अरà¥à¤¥ में वे समाज को हर बार चà¥à¤ª बैठने नहीं देते थे। और जब तक समाज सोया है वो चैन से सो नहीं सकते थे। वे समाज को जगाये रखना चाहते थे, उसकी चेतना को, उसके अंरà¥à¤¤à¤®à¤¨ को आंदोलित करने के लिà¤, वे सिरà¥à¤«, अपने मनोà¤à¤¾à¤µà¥‹à¤‚ की अà¤à¤¿à¤µà¥â€à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ कर-करके मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ नहीं अनà¥à¤à¤µ करते थे। वे चाहते थे जो à¤à¥€à¤¤à¤° उनके आग है, वो आग चहà¥à¤‚ ओर पहà¥à¤‚चे और वो ये नहीं चाहते थे कि वो आग जला दें, वो चाहते थे वो आग à¤à¤• रोशनी बने, जो आने वाले रासà¥â€à¤¤à¥‹à¤‚ के लिठपथदरà¥à¤¶à¤• बने। ये बहà¥à¤¤ कम होता है।
मैं सरसà¥â€à¤µà¤¤à¥€ का पà¥à¤œà¤¾à¤°à¥€ हूं और इसलिठशबà¥â€à¤¦ के सामरà¥à¤¥à¥â€à¤¯ को मैं अनà¥à¤à¤µ करता हूं, कोई शबà¥â€à¤¦ किस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से जीवन को बदल देता है, उस ताकत को मैं à¤à¤²à¥€-à¤à¤¾à¤‚ति अनà¥à¤à¤µ कर सकता हूं। à¤à¤• पà¥à¤œà¤¾à¤°à¥€ के नाते मà¥à¤à¥‡ मालूम है, à¤à¤• उपासक के नाते मà¥à¤à¥‡ मालूम है, और उस अरà¥à¤¥ में दिनकर जी ने अनमोल…अनमोल हमें, सौगात दी है, इस सौगात को आने वाले समय में, हमारी नई पीढ़ी को हम कैसे पहà¥à¤‚चाà¤à¤‚?
कà¤à¥€-कà¤à¤¾à¤° हम शायद इस देश में हरेक पीढ़ी के हजारों à¤à¥‡à¤¸à¥‡ कवि होंगे या साहितà¥â€à¤¯-पà¥à¤°à¥‡à¤®à¥€ होंगे। हजारों की तादाद में होंगे, à¤à¤¸à¤¾ मैं मानता हूं। जो दिनकर जी की कविताà¤à¤‚ मà¥à¤–पाठलगातार बोल सकते हैं, बोलते होंगे। ये छोटी बात नहीं है। जैसे कà¥à¤› लोग रामायण, महाà¤à¤¾à¤°à¤¤, वेद, उपनिषद उसकी शà¥â€à¤²à¥‹à¤• वगैरह जिस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से मà¥à¤–पाठबोलते हैं à¤à¤¸à¥‡ दिनकर जी के शबà¥â€à¤¦à¥‹à¤‚ के पीछे रमण हà¥à¤ हजारों लोग मिलेंगे। और उनको उसी में आनंद आता है उनको लगता है कि मैं दिनकर जी की बात आवाज पहà¥à¤‚चाऊंगा। मेरी बात लोग माने या न माने, दिनकर जी की बात दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ मानेगी।
और दिनकर जी को “पशà¥à¤°à¤¾à¤® की पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥à¤·à¤¾â€ थी और दिनकर जी अपने तराजू से à¤à¤¾à¤°à¤¤ की सांसà¥â€à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• उतार-चढ़ाव को जिस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से उनà¥â€à¤¹à¥‹à¤‚ने शबà¥â€à¤¦à¥‹à¤‚ में बदà¥à¤§ किया है। वे इसमें इतिहास à¤à¥€ है, इसमें सांसà¥â€à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• संवेदना à¤à¥€ है, और समय-समय पर à¤à¤¾à¤°à¤¤ की दिखाई हà¥à¤ˆ विशालता, हर चीज को अपने में समेटने का सामरà¥à¤¥à¥â€à¤¯, दिनकर जी ने जिस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से अनà¥à¤à¤µ किया है जो हर पल दिखाई देता है। और पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से दिनकर जी के माधà¥â€à¤¯à¤® से à¤à¤¾à¤°à¤¤ को समà¤à¤¨à¥‡ की खिड़की हम खोल सकते हैं। अगर हममें सामरà¥à¤¥à¥â€à¤¯ हो तो हम दà¥à¤µà¤¾à¤° à¤à¥€ खोल सकते हैं। लेकिन जरा à¤à¥€ सामरà¥à¤¥à¥â€à¤¯ न हो, तो खिड़की तो जरूर खोल सकते हैं। ये काम दिनकर जी हमारे बीच करके गये हैं।
दिनकर जी ने हमें कà¥à¤› कहा à¤à¥€ है, लेकिन शायद वो बातें à¤à¥‚लना अचà¥â€à¤›à¤¾ लगता है, इसलिठलोग à¤à¥‚ल जाते हैं। à¤à¤• बार, कà¥à¤› बà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤¯à¤¾à¤‚ समाज में आती रहती हैं, हर बार आती रहती हैं। करीब हर पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के अलग-अलग आती रहती हैं। लेकिन किसी ने जाति के आधार पर दिनकर जी के निकट जाने का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ किया है, उनको लगा कि मैं आप की बिरादरी का हूं, आपकी जाति का हूं, तो आप मेरा हाथ पकड़ लीजिठअचà¥â€à¤›à¤¾ होगा। और à¤à¤¸à¤¾ रहता है समाज में, लेकिन à¤à¤¸à¥€ परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ में à¤à¥€ दिनकर जी की सोच कितनी सटीक थी वरना, उस माहौल में कोई à¤à¥€ फिसल सकता है। और वो सà¥â€à¤µà¤¯à¤‚ राजà¥â€à¤¯à¤¸à¤à¤¾ में थे राजनीतिक को निकटता से देखते थे, अनà¥à¤à¤µ करते थे, लेकिन उस माहौल से अपने आप को परे रखते हà¥à¤, उस वà¥â€à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ को उनà¥â€à¤¹à¥‹à¤‚ने मारà¥à¤š 1961 को चिटà¥à¤ ी लिखी थी। उस चिटà¥à¤ ी में जो लिखा गया है बिहार को सà¥à¤§à¤¾à¤°à¤¨à¥‡ का सबसे अचà¥â€à¤›à¤¾ रासà¥â€à¤¤à¤¾ ये है, कि लोग जातिओं को à¤à¥‚लकर गà¥à¤£à¤µà¤¾à¤¨ के आदर में à¤à¤• हों। याद रखिठकि à¤à¤• या दो जातियों के समरà¥à¤¥à¤¨ से राजà¥â€à¤¯ नहीं चलता। वो बहà¥à¤¤à¥‹à¤‚ के समरà¥à¤¥à¤¨ से चलता है, यदि जातिवाद से हम ऊपर नहीं उठें, तो बिहार का सारà¥à¤µà¤œà¤¨à¤¿à¤• जीवन गल जाà¤à¤—ा। मारà¥à¤š 1961 में लिखी हà¥à¤ˆ ये चिटà¥à¤ ी, आज बिहार के लिअआज à¤à¥€ उतना ही जागृत संदेश है। ये किसी राजनीति से परिचित के शबà¥â€à¤¦ नहीं है, ये किसी शबà¥â€à¤¦-साधक के शबà¥â€à¤¦ नहीं है, ये किसी साहितà¥â€à¤¯ में रूचि रखने वाले सृजक के शबà¥â€à¤¦ नहीं है, à¤à¤• ऋषि तà¥à¤²à¥â€à¤¯ के शबà¥â€à¤¦ हैं जिसको आने वाले कल दिखाई देती है और जिसके दिल में बिहार की आने वाली कल की चिंता सवार है और तब जाकर शबà¥â€à¤¦, अपने ही समाज के वà¥â€à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ को सà¥â€à¤ªà¤·à¥â€à¤Ÿ शबà¥â€à¤¦à¥‹à¤‚ में कहने की ताकत रखता है।
बिहार को आगे ले जाना है, बिहार को आगे बढ़ाना है और ये बात मान कर चलिठहिंदà¥à¤¸à¥â€à¤¤à¤¾à¤¨ का पूरà¥à¤µà¥€ हिसà¥â€à¤¸à¤¾ अगर आगे नहीं बढ़ेगा, तो ये à¤à¤¾à¤°à¤¤ माता कà¤à¥€ आगे नहीं बढ सकती। à¤à¤¾à¤°à¤¤ का पशà¥à¤šà¤¿à¤®à¥€ छोर, वहां कितनी ही लकà¥à¤·à¥â€à¤®à¥€ की वरà¥à¤·à¤¾ कà¥â€à¤¯à¥‹à¤‚ न होती हो, लेकिन पूरब से सरसà¥â€à¤µà¤¤à¥€ के मेल नहीं होता, तो मेरी पूरी à¤à¤¾à¤°à¤¤ माता…मेरी पूरी à¤à¤¾à¤°à¤¤ माता उजागर नहीं हो सकती और इसलिठहमारा सपना है कि पूरà¥à¤µà¥€ हिनà¥â€à¤¦à¥à¤¸à¥â€à¤¤à¤¾à¤¨ कम से कम पशà¥à¤šà¤¿à¤® की बराबरी में तो आ जाà¤à¤‚। कोई कारण नहीं पीछे रहे। अगर बिहार आगे बढ़ता है, बंगाल आगे बढ़ता है, असम आगे बढ़ता है, पूरà¥à¤µà¥€ उतà¥â€à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ आगे बढ़ता है, नारà¥à¤¥-ईसà¥â€à¤Ÿ आगे बढ़ता है, सारी दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ देखती रह जाà¤à¤—ी, हिनà¥â€à¤¦à¥à¤¸à¥â€à¤¤à¤¾à¤¨ किस तरह आगे बढ़ रहा है।
दिनकर जी का à¤à¥€ सपना था बिहार आगे बढ़े, बिहार तेजसà¥â€à¤µà¥€, ओजसà¥â€à¤µà¥€, ये बिहार, सपनà¥â€à¤¨ à¤à¥€ हो। बिहार को तेज और ओज मिले किसी से किराठपर लेने की जरूरत नहीं। उसके पास है उसे संपनà¥â€à¤¨à¤¤à¤¾ के अवसर चाहिà¤, उसको आगे बढ़ने का अवसर चाहिठऔर बिहार में वो ताकत है, अगर à¤à¤• बार अवसर मिल गया, तो बिहार औरों को पीछे छोड़कर आगे निकल जाà¤à¤—ा।
हम दिनकर जी के सपनों को पूरा करने के लिठपà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¬à¤¦à¥à¤§ हैं और उनकी साहितà¥â€à¤¯ रचना की 50 साल की यातà¥à¤°à¤¾ आज à¤à¥€ हमें कà¥à¤› करने की पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ देती है, सिरà¥à¤« गीत गà¥à¤¨à¤—à¥à¤¨à¤¾à¤¨à¥‡ की नहीं। हमें कà¥à¤› कर दिखलाने की पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ देती है और इसलिठआज दिनकर जी को सà¥â€à¤®à¤°à¤£ करते हà¥à¤ उनकी साहितà¥â€à¤¯ रचना का सà¥â€à¤®à¤°à¤£ करते हà¥à¤ इस सà¤à¤¾à¤—ृह में हम फिर से à¤à¤• बार अपने आप को संकलà¥â€à¤ªà¤¬à¤¦à¥à¤§ करने के अवसर के रूप में उसे देंखे। और उस संकलà¥â€à¤ª की पूरà¥à¤¤à¤¿ के लिठदिनकर जी के आरà¥à¤¶à¥€à¤µà¤¾à¤¦ हम सब पर बने रहे और बिहार के सपनों को पूरा करने के लिठसामरà¥à¤¥à¥â€à¤¯ के साथ हम आगे बढ़ें।
इसी à¤à¤• अपेकà¥à¤·à¤¾ के साथ आप सब के बीच मà¥à¤à¥‡ आने का अवसर मिला। परिवारजनों को पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® करने का अवसर मिला। मैं अपने आपको बहà¥à¤¤ बड़ा सौà¤à¤¾à¤—à¥â€à¤¯à¤¶à¤¾à¤²à¥€ मानता हूं।
बहà¥à¤¤-बहà¥à¤¤ धनà¥â€à¤¯à¤µà¤¾à¤¦à¥¤